उज्जैन। जिले में भी अब पंचायत सचिवों पर तबादलों की तलवार सरकार ने लटका दी है। अभी तक पंचायत सचिव या तो पैतृक पंचायत में पदस्थ रहते रहे है या फिर ससुराल वाले स्थान की पंचायत में लेकिन सरकार ने ये सब रोक दिया है क्योंकि सूबे की मोहन सरकार ने पंचायत सचिवों के लिए भी अब तबादला नीति लागू कर दी है। गौरतलब है कि जिले में पंचायत कार्यरत है और पंचायत सचिव लंबे समय से एक ही स्थान पर जमे हुए है।
रिश्तेदारों के साथ काम करने वाले सचिवों को भी बदला जाएगा ताकि भाई-भतीजावाद पर लगाम लगे। जिन सचिवों ने किसी पंचायत में 10 वर्ष से अधिक समय बिताया है, उन्हें प्राथमिकता के आधार पर स्थानांतरित किया जाएगा। महिलाओं के मामले में विवाहित, तलाकशुदा या विधवा को स्वेच्छा से अंतर-जिला स्थानांतरण की अनुमति दी गई है, इसके लिए दोनों जिलों के जिला पंचायत सीईओ की एनओसी अनिवार्य होगी। इस नीति का उद्देश्य पारदर्शिता बढ़ाना और प्रशासनिक निष्पक्षता सुनिश्चित करता है।
कलेक्टरों को दिए निर्देश
कलेक्टरों को दिए निर्देश में कहा गया है कि यदि किसी ग्राम पंचायत में सचिव का नातेदार सरपंच या उपसरपंच चुन लिया गया है तो ऐसी स्थिति में ग्राम पंचायत से सचिव का तबादला दूसरी ग्राम पंचायत में किया जाएगा। तबादले के बाद नई पदस्थापना वाली ग्राम पंचायत में सचिव का नातेदार सरपंच या उपसरपंच नहीं होना चाहिए। किसी भी पंचायत सचिव को उसके पैतृक ग्राम पंचायत या उसके ससुराल की ग्राम पंचायत में पदस्थ नहीं किया जाएगा। मप्र में तबादलों का दौर तेजी से जारी है और इसी क्रम में पंचायत सचिवों की तैनाती को लेकर राज्य सरकार ने महत्वपूर्ण फैसला लिया है। पंचायत और ग्रामीण विकास विभाग ने स्पष्ट कर दिया है कि पंचायतों में वर्षों से जमे सचिवों को हटाया जाएगा। इससे पहले सचिव अपनी ही पंचायत में वर्षों तक पदस्थ रहकर कई मामलों में पक्षपात के आरोपों में घिरे रहे हैं। इस नीति में कहा गया है कि एक ही पंचायत में दस साल की समय अवधि पूरी कर चुके पंचायत सचिवों के तबादले सबसे पहले होंगे। कोई भी पंचायत सचिव अपनी पैतृक पंचायत या ससुराल में पदस्थ नहीं किया जा सकेगा।
