लद्दाख के उत्तरी क्षेत्र में पूर्व ऑपरेशनल लॉजिस्टिक्स प्रमुख मेजर जनरल अमृत पाल सिंह ने WSJ से कहा- इस घटना के बाद हमें अपनी पूरी रणनीति बदलने की जरूरत महसूस हुई।लद्दाख की गलवान घाटी में 15 जून 2020 को भारत-चीन के सैनिकों के बीच हुई झड़प हुई थी।
11,500 फीट की ऊंचाई पर बन रही जोजिला सुरंग-भारत के नॉर्दर्न कमांड के पूर्व कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने WSJ को बताया कि इन प्रोजेक्ट मकसद ऊंचाई वाले सैन्य चौकियों को अलग-थलग पड़ी नागरिक बस्तियों से जोड़ना है।खासकर उन जगहों को जो कड़ाके की सर्दी में कट जाती हैं। सबसे जरूरी प्रोजेक्ट में से एक जोजिला सुरंग है, जिसे उत्तरी भारत के पहाड़ों में लगभग 11,500 फीट की ऊंचाई पर बनाया जा रहा है।यह प्रोजेक्ट 2020 संघर्ष के कुछ महीनों बाद शुरू हुआ। इसे 750 मिलियन डॉलर (6,734 करोड़ रुपए) से ज्यादा की लागत से बनाया जा रहा है। इसे 2028 तक पूरा करने का टारगेट रखा गया है।सीमा चौकियों तक सामान पहुंचाना आसान हो जाएगा
जनरल दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि लगभग 9 मील (15 किमी) लंबा यह प्रोजेक्ट लद्दाख में बॉर्डर चौकियों तक सामान पहुंचाने के मुश्किल काम को आसान बना देगा। लद्दाख में भारी बर्फबारी के कारण ये चौकियां साल में 6 महीने तक सप्लाई लाइन से कटी रहती हैं।फिलहाल सामान ट्रकों या ट्रेनों से जम्मू और कश्मीर के पड़ोसी डिपो तक पहुंचाया जाता है। वहां से सेना के काफिले उन्हें लद्दाख की राजधानी लेह तक ले जाते हैं।लेह से छोटी गाड़ियां खराब रास्तों से गुजरती हैं और फिर पोर्टर (सामान ढोने वाले लोग) और खच्चर समुद्र तल से 20,000 फीट ऊपर तक जरूरी सामान पहुंचाते हैं।3 घंटे का सफर 20 मिनट में पूरा होगा-हर सैनिक को हर महीने लगभग 220 पाउंड आपूर्ति की जरूरत होती है, जिसमें भोजन, कपड़े और टूथपेस्ट जैसी जरूरी चीजें शामिल हैं।30 सैनिकों वाली एक चौकी में हर दिन लगभग 13 गैलन ईंधन की खपत होती है, जो किसी के कंधे पर चढ़ाकर ऊपर पहुंचाई जाती है।जोजिला सुरंग सामान की आवाजाही आसान बनाएगी। इसके बनने से श्रीनगर और लद्दाख के बीच यात्रा का समय कुछ इलाकों में 3 घंटे से घटकर 20 मिनट हो जाएगा।यहां एक बड़ी इंजीनियरिंग चुनौती वर्कर्स और बाद में डीजल से चलने वाली सेना की ट्रकों के लिए पर्याप्त वेंटिलेशन (हवा का आना-जाना) बनाए रखना है। इस प्रोजेक्ट मे 1,000 से ज्यादा वर्कर्स काम कर रहे हैं।
