विकास प्राधिकरण सिंहस्थ क्षेत्र का विकास करने को उतावला 5000 किसान, आश्रित करीब 40 हजार लोग हो जाएंगे बर्बाद

उज्जैन। सिंहस्थ-2028 के लिए उज्जैन में लैंड पूलिंग योजना दमनकारी और किसानों के हित के विपरीत है। इससे करीब 5000 किसान प्रभावित होंगे और उनके आश्रित लगभग 35 से 40 हजार परिजनों का आसरा छिन जायेगा। उज्जैन विकास प्राधिकरण की इस योजना से किसानों की आमदनी हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी। पूर्व में विकास प्राधिकरण शिप्रा विहार योजना में उज्जैन के सैंकडों लोगों को उलझा चुका है जिन्हें न तो पैसा मिल रहा है और न ही जमीन मिल पा रही है।सिंहस्थ का स्वरूप बनना और बिगड़ना है जो कच्चे में लगता है और बिगड़ता है। सिंहस्थ महाकुंभ 12 वर्ष में एक बार लगता है । सिंहस्थ किसान संघर्ष समिति उज्जैन ने कहा कि 40 फीट, 60 फीट, 80 फीट, 110 फीट की चौडी सडकें जो सिंहस्थ क्षेत्र में बनाने की योजना है वह किसानों के लिये बहुत घातक, क्षतिकारक है। यदि यह योजना आती है तो हजारों वृक्ष कटने से पर्यावरण का बडा नुकसान होगा। इसका उदाहरण हम कोरोनाकाल में देख चुके है। आक्सीजन प्राणवायु के अभाव में हजारों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। जिसकी पूर्ति कदापि संभव नहीं है। इस योजना से अन्नदाता को भूखे मरने की नौबत आ रही है। इस योजना की संतों को कोई आवश्यकता ही नहीं है। यदि यह योजना आती है तो रोड़ बनने से किसानों की फसल असुरक्षित हो जाएगी, खड़ी फसल पक जाने के बाद कोई भी सिगरेट व बीड़ी यदि फसल के ऊपर फेंक देगा तो फसल जल जाएगी। इसका उदाहरण कई बार देखा है।खेत डबरी बनकर रह जाएंगे-इस योजना के तहत यदि रोड बनता है तो खेत, डबरी, तालाब बन जाएंगे जिससे उपजाऊ जमीन का नुकसान होगा। चरनोई भूमि समाप्त हो जावेगी। पशु रोड पर और शहर में घुमने पर मजबूर हो जाएंगे। यहां पर रोड बनने से 11 साल 10 महीने तक कोई उपयोग नहीं होगा। कई गरीब किसान अपनी आर्थिक स्थिति खराब होने पर भूखे मरने व आत्महत्या करने के लिये मजबूर हो जाएगा। इसका उदाहरण मंदसौर में किसानों पर गोली चलाकर सरकार की दमनकारी नीति का पूर्व में देखा जा चुका है। उसके परिणाम सरकार को भी पता है।23 हजार करोड लगेंगे-यह योजना 23,000 करोड़ रूपये का अपव्यय है। जो संत जहां पर अपना केम्प लगाते थे इस योजना के बाद संतों के बीच विवाद होने की संभावना ज्यादा हो जाएगी। सभी गाडी सेटेलाईट टाउन के बाहर रहेगी, तो सिंहस्थ एरिया में इतने बड़े रोड़ की क्या आवश्यकता है ? सिंहस्थ की इस योजना में सिंहस्थ के नाम पर कृषि भूमि का व्यापार हेतु अधिग्रहण किया जा रहा है। इस बार सिंहस्थ 2028 के मेला क्षेत्र 2380 हेक्टेयर जमीन सरकार इस योजना को लेकर अधिग्रहण कर रही है इसमे लगभग 12,000 बीघा जमीन अधिग्रहित कर रहे है।यूडीए शिप्रा विहार में फैल हुआ-वर्ष 2006 में यूडीए ने शिप्रा विहार योजना लाई थी। उस दौरान यूडीए के अध्यक्ष वर्तमान मुख्यमंत्री डा.मोहन यादव एवं उपाध्यक्ष सांसद अनिल फिरोजिया थे । इस योजना में मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए 300 भूखंडों काटे थे। 127 भूखंड की लाटरी निकाली गई थी। उन्हें भूखंड देना तय हुआ था। लाटरी में चयनित होने वाले परिवारों ने विकास प्राधिकरण को नियमानुसार पैसा जमा किया गया और रजिस्ट्री सहित अन्य काम किए । यहां तक की कुछ लोगों ने तो नक्शे पास करवाए। जब ऐसे लोग स्थल पर कब्जा लेने पहुंचे तो वक्फ बोर्ड के लोगों ने उनका विरोध किया और जमीन वक्फिया बताई गई। प्राधिकरण हाईकोर्ट पहुंचा तो वहां से इन्हें वक्फ ट्रिब्यूनल में जाने का कहा गया । 15 साल बीतने को है और भूखंड खरीदने वालों को न तो भूखंड मिल पा रहा है और न ही उनका पैसा । यह भी नहीं है कि भूखंड के एवज में किसी और योजना में उन्हें भूखंड देने को लेकर निर्णय भी नहीं लिया जा रहा है । ऐसे में शहर के 120 परिवार विकास प्राधिकरण के कारण माया मिली न राम के फेर में अब भी उलझे हुए हैं।मंदिर की दान की जमीन पर नजर-श्री महाकालेश्वर मंदिर को नीमनवासा में 45 बीघा जमीन दान में मिली हुई है। इस जमीन को विकास प्राधिकरण ने अपने अधिगृहण में बाले-बाले ही ले लिया । मामले की जानकारी लगने पर ही इसका खुलासा हुआ और फिर इस पर जमकर शहर में प्रतिक्रिया हुई। असल में मामला मंदिर प्रबंध समिति में प्रशासक पद पर रहने के दौरान सीईओ विकास प्राधिकरण ने नीमनवासा क्षेत्र में कालोनी के लिए जमीनों का अधिग्रहण किया था। इन्हीं जमीनों में एक जमीन श्री महाकालेश्वर मंदिर के नाम थी। इस जमीन को लेकर अधिग्रहण का सूचना पत्र विकास प्राधिकरण से जारी हुआ और मंदिर समिति में बाले-बाले ही सूचित हो गया। बाद में कालोनी विकास की शुरूआत के समय जमीन को खुर्द-बुर्द करने की प्रक्रिया के दौरान जानकारी सामने आने पर मिडिया में मामला उठ गया। धर्मस्व के नियमों के विपरित यह जमीन अधिग्रहित कर ली गई थी। वर्तमान में यहां करीब 2000 बीघा पर विकास प्राधिकरण कालोनी बना रहा है। अभी मंदिर की जमीन जितनी खुर्द-बुर्द की उसी स्थिति में पडी हुई होना बताई जा रही है। इस मामले में समय रहते मिडिया आवाज नहीं उठाता तो जमीन पर विकास कार्य कर 50 प्रतिशत जमीन मंदिर प्रबंध समिति को वापस यूडीए करता। बाद में 22 बीघा जमीन को लेकर मंदिर को ही कालोनी काटने का काम करना पडता। साथ ही जमीन अनेक हिस्सों में तब्दील हो जाती।

 

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