खुसूर-फुसूर किसानों पर बंधन… सरकारी विभाग को छूट…!

खुसूर-फुसूर

 

किसानों पर बंधन… सरकारी विभाग को छूट…!

जिले में नीलगाय की समस्या पूरे प्रांत के साथ ही बनी हुई है। किसानों की फसल नष्ट होने पर भी उन पर इस जंगली जीव के विरूद्ध कदम उठाने की मंजूरी नहीं है। यहां तक की झटका मशीन को लेकर भी कोई अनुमति की स्थिति नहीं है। रात भर किसान खेतों पर जागकर अपने चने और अन्य फसलें बचाने के लिए तमाम कवायद करता है। इसके लिए खेत पर पटाखे चलाए जाते हैं हाका लगाया जाता है। सरसराहट की आवाज के लिए जतन किए जाते हैं। कई किसानों ने बागड तक लगाई है। इस समस्या को लेकर किसान सरकार के सामने कई बार गुहार लगा चुके हैं। उन्हें सरकार की और से ऐसी कोई अनुमति नहीं दी गई जिससे वन्यजीव संरक्षण और पर्यावरण के नियमों का उल्लंघन हो लेकिन उज्जैन के उद्यानिकी विभाग के कर्णधारों ने सरकार के किए धरे पर पानी फैरते हुए अपनी नर्सरी के आम बाग को नीलगाय से बचाने के लिए यहां झटका मशीन का उपयोग किया। इसकी अनुमति किससे ली यह अपने आप में ही सवाल है। इस मशीन के उपयोग के दौरान बिजली के तारों में उलझकर दो नीलगाय की मौत हो गई । पूरा मामला खूली किताब की तरह से सामने हैं। उसके बाद भी इस मामले को लेकर जिम्मेदार विभाग के अधिकारी मोबाईल बंद कर बैठ जाते हैं। जंगल विभाग मामले में सब कुछ सामने होने पर भी मात्र पंचनामा बनाता है जबकि उसके कर्णधारों की जिम्मेदारी ऐसे मामलों में बढ जाती है, उसे निष्पक्षता के साथ इसमें तत्काल ही घटनास्थल से मिले साक्ष्यों के आधार पर प्रकरण दर्ज करना था लेकिन ऐसा नहीं किया गया। न ही घटनास्थल से बिजली के तार और झटका मशीन ही बरामद की गई। यही नही इस विभाग के अधिकारी भी पूरे मामले को लेकर अपने चलायमान यंत्र उठाने को तैयार नहीं थे। खुसूर-फुसूर है कि यही मामला किसी किसान के खेत पर हो जाता तो जंगल विभाग उसे हैरान परेशान कर देता,ये भी नहीं देखा जाता कि किसान कितने सालों से इस समस्या से जुझ रहे हैं उल्टा किसान के यहां से सब कुछ जब्त होता हरी लहर की अपेक्षा रखी जाती। उसके उलट आम बाग में पहुंचे सभी जिम्मेदार ठेके पर गए बाग और घटनास्थल के जिम्मेदार विभाग की तरफ ऐसे झूके जैसे घुटना पेट की तरफ झुकता है।

 

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