श्री शुकदेव जी महाराज के प्राकट्य महोत्सव पर भागवताचार्य का सम्मान

बडनगर। परीक्षित का अर्थ होता है जिसने परीक्षा दे दी। महाभारत काल द्वापर युग में परीक्षित अपनी मां के गर्भ में ही शांत हो गया था लेकिन पूर्ण पुरषोत्तम श्रीकृष्ण ने उन्हें नव जीवन दिया विरक्त श्रोता के लिए विरक्त शुकदेव मुनि जैसे ही भागवत का रसपान करा सकते हैं।
उक्त उद्गार श्री राघवानंद भक्त मंडल के द्वारा आयोजित वैशाख कृष्ण अमावस्या की पुण्यतिथि पर आचार्य महामुनीन्द्र भगवान श्री शुकदेव जी मुनि के प्राकट्य उत्सव पर भागवताचार्य पंडित जगदीश शर्मा ने सियाराम आश्रम पर कही। आपने कहा कि मां पार्वती को महादेव ने एकांत में अमर कथा का रस पान कराया था। माता को नींद आ गई। उस स्थान पर शुक्र का अंडा था। उस से बच्चा बाहर आ गया। जैसे माता हरे- हरे करती थी वैसे वह भी करने लगा।जब महादेव का ध्यान गया तो देखा कि पार्वती जी सो रही है और तोते का बच्चा हरे – हरे बोल रहा हे महादेव उसे मारने के लिए भागे तो वह वेद व्यास जी के आश्रम में उनकी पत्नी जम्हाई ले रही थी । तो वह उनके शरीर में प्रवेश कर गया ।
श्री विष्णु के आमंत्रण पर कई वर्ष बाद गर्भ से बाहर आये और वचन दिया की तेरे ऊपर माया का प्रभाव न हो । इस शुभ अवसर पर आश्रम के अर्चक मुख्य अतिथि रामानुजाचार्य की सन्निधि में राघव भक्त मंडल के द्वारा यज्ञाचार्य पंडित सतीश शर्मा का शाल श्रीफल भेंट कर बहुमान सम्मान किया। इस दौरान प्रमुख रूप से कैलाश हलवाई,भवानी शंकर जोशी ,जयप्रकाश त्रिवेदी,सुरेश व्यास ,सुनील शर्मा ,लोकेंद्र पटेल,सुनील मंडलोई, बद्रीलाल राठोड़ उपस्थित थे।स्वागत भाषण पंडित रामनिवास नवहाल ने दिया। आभार भक्त मंडल के संयोजक महेंद्र शर्मा ने माना।