नेकी की दीवार भी नहीं बची बदनियतों की नजर से

 

-पुराने कपडों के ढेर नहीं अब चंद चिधडे पडे रहते हैं,

उज्जैन। नेकी दीवार पर बदनियतों की नजर होने से गरीबों को कपडे का यह सहारा भी सिमट गया है। दान करने वाले तो बराबर नेकी की दीवार पर पुराने अनुपयोगी कपडों को छोड जा रहे हैं लेकिन बदनियतों के कारण ये कपडे गरीबों को नहीं मिल पा रहे हैं। गरीब यहां रोज इस आस में आते हैं कि उन्हें कुछ ठीक कपडे मिल जाएंगे लेकिन बदनियत पहले ही बेईमानी कर चुके होते हैं।

शहर में चामुंडा माता के पीछे और नानाखेडा पर बने पुराने  बस स्टाप पर नेकी की दीवार का चलन शहर के कुछ लोगों ने शुरू किया था। गरीबों की सहायता का यह क्रम शुरूआत में बहुत चला । इसकी खासियत यह रही की किसी गरीब को मालदार के सामने खडे होकर मांगने की जरूरत नहीं थी। शहर के लोग अपने पुराने पहनने जैसे कपडे यहां छोड जाते हैं और बाद में उनमें से गरीब असहाय लोग अपने अनुसार कपडों का चयन कर ले जाते हैं। इन नेकी की दिवारों को भी बदनियतों ने नही बख्शा है। अब रोज गरीब असहाय यहां कपडों की आस में आते तो हैं पर निराशा ही उनके हाथ ज्यादा लगती है। अधिकांश कपडे रखकर जाने वाले के  मूंह फेरते ही बदनियत यहां से उठा ले जाते हैं और उसके बाद इन कपडों से भी नकदी खडी की जा रही है। यह हाल पिछले कई दिनों से बना हुआ है।

बेईमान ले जाकर बेच रहे-

नेकी की दीवार पर नेकी करने वाले पुराने और अच्छे कपडे जरूरत मंदों के लिए छोड जाते हैं । पूर्व से यहां बैठने वाले कतिपय बदनियत, बेईमान कपडों के डालते ही उन्हें उठाने में देर नहीं करते हैं। उसके बाद ये कपडे शहर की ऐसी दुकानों और उद्योगपुरी में फाडकर बेच दिए जाते हैं। किलो के भाव में ये कपडे बेचे जाते हैं। यही नहीं इन कपडों को देकर बदनियत स्टील के बर्तन लेते हैं और बाद में उसे स्टील के भाव में बेच रहे हैं। शहर की कुछ दुकानों पर पुराने कपडे बेचे जाते हैं। उन्हें भी ये बदनियत नेकी की दीवार से उठाए कपडे बेच रहे हैं। इसके अलावा नेकी की दीवार से उठाए गए कपडों को उद्योगपुरी क्षेत्र में ले जाकर मशीनों की सफाई के लिए बेचा जा रहा है।

अधिकांश नशेडी लगे काम में-

दोनों ही नेकी की दीवार के आसपास दिन भर नशेडियों की उपस्थिति बनी रहती है। इनका पुराने कपडे लेकर पहनने से कोई वास्ता नहीं होता है। ये कपडों के आते ही यहां से उन्हें बटोरते हैं और गठ्ठर बना कर सीधे उद्योगपुरी में 40 रूपए किलो में बेंच देते हैं। यहां आने वाले कपडों के जरूरतमंद वास्तविक गरीब और असहाय को ऐसी परिस्थिति में कपडे नही मिल पाते हैं और निराशा उनके हाथ लगती है।

कुछ ने व्यापार बनाया-

नशेडियों के सहारा कुछ लोगों ने नेकी की दीवार से कपडे उठवाने के काम को व्यापार रूप में अपना लिया है। ऐसे लोग नशेडियों को कुछ रूपए दे रहे हैं और उनसे ढेर के रूप में नेकी की दीवार से कपडे उठवाते हैं। उसके बाद इन कपडों को ले जाकर किलो के रूप में बेचने का व्यवसाय अपना लिया गया है। उद्योगपुरी के साथ ही कई अन्य कामों में भी पुराने कपडों का उपयोग लिया जाता है। इसके चलते प्रतिदिन ऐसे लोग सैंकडों रूपए कमा रहे हैं और धर्मनगरी के नाम पर बट्टा लगा रहे है। इस कारण से नेकी की दीवार पर जरूरतमंदों को कपडे उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं।