परीक्षक की खता की सजा भुगत रहे एमबीबीएस के 160 विद्यार्थी, अब जाकर पकड़ में आई गलती

 

 

इंदौर। एमजीएम मेडिकल काॅलेज के एमबीबीएस के 46 विद्यार्थियों द्वारा प्रायोगिक परीक्षा में फेल करने के मामले में जांच के दौरान बड़ी गड़बड़ी सामने आई है। इसमें यह सामने आया कि 46 नहीं बल्कि बैच के 160 विद्यार्थियों को भ्रम के कारण कम अंक दिए गए हैं। कथा परीक्षक ने की और उसकी सजा 160 विद्यार्थियों को भुगतना पड़ रही है।
इस गड़बड़ी का कारण क्लर्क द्वारा अंक अपलोड करने में चूक और परीक्षक द्वारा विश्वविद्यालय को अंक जमा करने से पहले इस गलती को न पकड़ पाना है। हालांकि एमजीएम मेडिकल कालेज ने सोमवार को अपनी ओर से यह गलती भी स्वीकार कर ली है। कॉलेज ने यह भी कहा कि संशोधित अंकों की नई सूची मध्य प्रदेश मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी जबलपुर को तदनुसार परिणाम अपडेट करने के अनुरोध के साथ भेजी जाएगी।
परीक्षा नियंत्रक डा. सचिन कुच्या ने कहा कि उन्होंने मेडिकल काॅलेज से सभी परीक्षकों द्वारा विधिवत हस्ताक्षरित शपथ पत्र भेजने को कहा है। अंतिम निर्णय के लिए मामले को परीक्षा बोर्ड के समक्ष रखा जाएगा। बैच के परिणामों को संशोधित करने के साथ, विश्वविद्यालय को अंतिम वर्ष के एमबीबीएस छात्रों की राज्य मेरिट सूची को भी संशोधित करना पड़ सकता है।

परीक्षक से हुई गड़बड़ी

सूत्रों के मुताबिक यह गड़बड़ी एक परीक्षक ने की, जिसने 60 अंकों के स्थान पर कुल 10 अंकों से छात्रों का मूल्यांकन किया था। क्लर्क दिए गए अंकों को पूरे छह से गुणा करने में चूक गया और परीक्षक भी विश्वविद्यालय को अंक जमा करने से पहले इस गलती को पकड़ने में विफल रहे। एक वरिष्ठ प्रोफेसर ने कहा कि इस गड़बड़ी ने न केवल उन 46 विद्यार्थियों को प्रभावित किया जो प्रायोगिक परीक्षा में फेल रहे, बल्कि बैच के सभी विद्यार्थियों के परिणाम और योग्यता पर भी असर पड़ा है।
अंकों को संशोधित करने के लिए एमपीएमएसआई के साथ मेडिकल काॅलेज के प्रारंभिक अनुरोध को मेडिकल विश्वविद्यालय ने खारिज कर दिया है और काॅलेज से गड़बड़ी का उल्लेख करते हुए एक शपथ पत्र भेजने के लिए कहा है।
एचओडी सर्जरी विभाग डाॅ. मनीष कौशल ने बताया कि उन्होंने प्रैक्टिकल परीक्षा के अंकों की दोबारा गणना की और तकनीकी त्रुटि पाई। हमने त्रुटि को सुधार लिया है और परिणाम को संशोधित करने के लिए एमपीएमएसयू को एक शपथ पत्र भेज रहे हैं। शपथ पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए सभी परीक्षकों के हस्ताक्षर आवश्यक हैं।