मंदा हो गया कुम्हारों का धंधा, अब कम सुनाई देती आवाज मटके ले लो….ठंडे पानी के मटके ले लो…

उज्जैन। शहर के गली मोहल्लों में मटके ले लो…मटके ले लो…ठंडे पानी के मटके ले लो जैसी आवाज अब कम ही सुनाई देती है। इसके पीछे कारण यह सामने आया है कि अधिकांश नागरिकों के घरों में या तो फ्रिज है या फिर आरओ लगा हुआ है, लिहाजा मटके के व्यापार पर असर होने लगा है। कुम्हारों का धंधा मंदा हो गया है।
मटके बेचने वालों की यदि माने तो बीते कुछ वर्षों से मटकों की मांग कम हो गई है और इसका विपरित परिणाम आर्थिक रूप से कमजोर होने के रूप में उनके सामने आ रहा है। हालांकि ग्रामीण इलाकों के लोग जरूर मटके खरीद रहे है लेकिन जिस तरह से लगभग एक दशक पहले गली मोहल्लों में ठेले पर बेचने के लिए मटके ले जाए जाते थे वह ठेला देखते ही देखते खाली हो जाया करता था क्योंकि जितने भी मटके बेचने के लिए ले जाये जाते थे, वे सब के सब बिक जाया करते थे लेकिन अब ऐसा नहीं होता। हालांकि मटके बिक जरूर रहे है परंतु बहुत कम संख्या में और वह भी बाजारों में मटके बेचने वालों के पास से। रही बात गली मोहल्लों या कॉलोनियों की तो यहां मटके बेचने वाले पहुंचते तो है लेकिन उन्हें निराश ही लौटना पड़ता है।

मटकों की जरूरत फ्रिज पूरी कर रही
पहले वाहन चालकों द्वारा प्यास बुझाने के लिए छागल का उपयोग किया जाता था। अधिकांश वाहनों में छागल बंधा रहता था। लेकिन अब छागल के बदले मिनरल वाटर की बोतलें गीले कपड़ों में लिपटी दिखाई पड़ती है। बाजार से मटका व छागल की मांग कम हो गई है। वहीं मटके की पूछ परख धीरे-धीरे कम हो रही है। ठंडे पानी का पाउच व मिनरल वाटर व दूसरे शीतल पेय पदार्थो का प्रचलन इतना बढ़ गया है कि लोग ठंडे पानी के लिए छागल रखना पसंद ही नहीं करते हैं। वहीं घरों में मटकों की जरूरत फ्रीज पूरी कर रही है।

ठंडा और सेहत के लिए फायदेमंद
बुजुर्ग ही नहीं बल्कि चिकित्सक भी यह मानते है कि फ्रिज के पानी की बजाय मटके का पानी सेहत के लिए फायदेमंद रहता है। मटके का पानी ठंडा रहता है और प्यास भी पूरी तरह से बुझाता है लेकिन फ्रिज का पानी प्यास को बुझाने में सक्षम नहीं माना जाता है। इसके अलावा मटके का पानी कई स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से भी बचाने में मददगार होता है।