आठ साल में भी पूरे नहीं हो सके स्मार्ट सिटी के काम

उज्जैन। जिम्मेदार अफसरों की लापरवाही स्मार्ट सिटी के कामों पर भारी पड़ रही है और इसका परिणाम यह सामने आ रहा है कि प्रदेश के चुनिंदा स्मार्ट सिटी के कार्य अधूरे पड़े हुए है। जानकारी के अनुसार उज्जैन में ही 282 करोड के काम अधूरे है। हालांकि इन कामों को पूरा करने के लिए पांच माह का समय निर्धारित किया गया है।

मप्र ऐसा राज्य है, जहां पर कोई भी सरकारी प्रोजेक्ट हो वो समय पर कभी पूरा नहीं होता है। फिर वह प्रोजेक्ट राज्य या केंद्र सरकार का कितना भी महत्व वाला ही क्यों न हो। अहम बात यह है कि इस तरह के मामलों में संबंधित अफसरों पर सरकार व शासन भी कोई कार्रवाई नहीं करता है, जिसकी वजह से अफसरों की कार्यशैली सुधरने का नाम ही नहीं ले रही है। अफसरों की ऐसी ही लापरवाही  स्मार्ट सिटी के कामों पर भी भारी पड़ रही है। इसकी वजह से न केवल इन कामों की लागत बढ़ रही है , बल्कि लोगों को भी होने वाली परेशानी से राहत नहीं मिल पा रही है। यही वजह है कि केन्द्र सरकार द्वारा इन कामों के लिए मोहलत पर मोहलत देनी पड़ रही है। इस बार केन्द्र सरकार ने पांच माह का समय और दिया है। इस अवधि में करीब छह अरब कीमत के कामों को जून माह तक पूरा करने को कहा गया है। उज्जैन सहित पहले चरण में प्रदेश के जिन शहरों को इस काम के लिए चुना गया था, उनके काम आठ साल में भी पूरे नहीं हो सके हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जून, 2015 को स्मार्ट सिटी मिशन लॉन्च किया था। इसके पहले चरण में भोपाल के साथ इंदौर और जबलपुर का चयन किया गया था। फिर उज्जैन, ग्वालियर, सागर और सतना का भी चयन कर लिया गया था। जिससे प्रदेश के इस योजना में चयनित शहरों की संख्या सात हो गई थी। इन शहरों को स्मार्ट बनाने के लिए केंद्र व राज्य से मिलने वाली ग्रांट से 6609 करोड़ रुपए के 640 प्रोजेक्ट की योजना तैयार की गई थी।  हद तो यह है कि यह काम अधूरे पड़े हुए हैं और जो काम स्मार्ट सिटी ने खुद के वित्तीय संसाधनों से भी तैयार किए थे, वे भी पूरे नहीं हो सके हैं।

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