नेता हार का ठीकरा इवीएम पर थोपते है पर प्रमाण नहीं देते

हर मशीन में 6 लेयर सुरक्षा प्रावधान छेड़छाड़ साबित करने पर ईनाम भी

मतदान के पहले तीन बार होती है ईवीएम में इस तरह वोटिंग

इंदौर। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद ईवीएम फिर एक बार कठघरे में हैं। कांग्रेस की ओर से लगातार ईवीएम में छेड़छाड़ के आरोप लग रहे हैं। दरअसल कांग्रेस हो या फिर किसी अन्य दल के नेता सभी अकसर अपनी हार का ठिकरा इवीएम पर थोपते है पर प्रमाण नहीं देते जबकि हकीकत ये है कि हर मशीन में 6 लेयर सुरक्षा प्रावधान है और निर्वाचन आयोग द्वारा छेड़छाड़ साबित करने पर ईनाम की घोषणा भी की गई है। किंतु कोई भी यह चैलेंज यह स्वीकार नहीं करता।

 

फर्स्ट लेवल चेकिंग-

चुनाव की तैयारियों के दौरान करीब दो दिन पहले होती है। इसमें जितने बूथ होते हैं, उससे 25 फीसदी ज्यादा कंट्रोल यूनिट और 35 फीसदी ज्यादा वीवीपैट ली जाती है। इंदौर में 2561 बूथ थे, यानी 3201 कंट्रोल यूनिट और करीब 3430 वीवीपैट को चुनाव के लिए तैयार करने के लिए फर्स्ट लेवल चेकिंग के लिए रखा गया। इसमें हर मशीन के एक-एक वोटिंग बटन (जो 16 होते हैं) को चार बार दबाया जाता है यानि हर मशीन में 64 बार बटन दबाकर देखा जाता है।
इस चेकिंग के बाद फिर क्रास चेकिंग शुरू होती है। इसमें दो फीसदी मशीन में 500-500 वोट डालकर देखे जाते हैं। इन डाले गए बोट को वीवीपैट से मिलान होता है। यह सभी प्रक्रिया वीडियो रिकार्डिंग होती है और साथ ही सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में होती है।

कमीशनिंग प्रक्रिया भी है —

पुख्ता अगली वोटिंग प्रक्रिया, चुनाव में लड़ने वाले उम्मीदवार तय होने के बाद होती है। यह कमीशनिंग कहलाती है। इसमें मशीन में मतपत्र लगाया जाता है जो भी चुनाव के उम्मीदवार होते हैं, उनके इसके बाद राजनीतिक दलों के अभ्यर्थियों और उनके प्रतिनिधियों से ही कहा जाता है कि वह पांच फीसदी मशीन चुन लें।
वह जिस मशीन को कहते हैं वह उठाकर वोट डालकर चेक की जाती है। बाद में वीवीपैट से इसका मिलान होता है। इस प्रक्रिया में भी पूरे चुनाव में इंदौर और मप्र में कहीं कोई शिकायत नहीं हुई। मॉकपोल की प्रक्रिया होने के बाद सभी मत को जीरो किया जाता है और वीवीपैट में आए कटकर गिरे मत को हटाकर लिफाफे में पैक कर लिया जाता है।

दो बार हुआ ईवीएम को चैलेंज , नहीं कर पाया कोई

साबित साल 2009 में ईवीएम को बीजेपी द्वारा कठघरे में लाया गया था लेकिन कुछ नहीं हुआ। इसके बाद 2017 में हुए पांच राज्यों के चुनाव में जब पंजाब में कांग्रेस हारी तो फिर जमकर हंगामा हुआ। इसके बाद आयोग ने भी खुला चैलेंज दे दिया कि वह किसी भी राज्य में जाकर स्ट्रांग रूम से ईवीएम ले आए और चेक करा ले, ईवीएम को हैक करके बता दे, लेकिन कोई सामने नहीं आया और फिर आरोप हवा-हवाई साबित हुए। महाराष्ट्र में भी इसे लेकर याचिका लगी, इस पर फारेंसिंक लैब में जांच कराने के आदेश महाराष्ट्र

कोर्ट ने दिए, लैब की रिपोर्ट में आया कि इसमें छेड़छाड़ संभव नहीं है। वहीं उत्तराखंड कोर्ट ने तो यह सख्त आदेश दिया कि बेवजह ईवीएम पर आरोप लगाने पर छह माह की सजा दी जाएगी।

ईवीएम वही बताती है जो मतदाता करते हैं-

इस संबंध में पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने कहा कि ईवीएम हर बार, हर चुनौती में सौ फीसदी सही साबित हुई है। ओपन चैलेंज तक आयोग ने दिया था लेकिन कुछ नहीं हुआ, कोई इसमें गड़बड़ी साबित नहीं कर सका। चेक एंड बैलेंस की फिर भी आयोग ने बेहतर व्यवस्था की हुई है चाहे फर्स्ट लेवल चेकिंग हो, कमीशनिंग, मॉकपोल हो या फिर अभ्यर्थी द्वारा आपत्ति लिए जाने पर हर पोलिंग बूथ पर वीवीपेट से क्रास चेक करने की व्यवस्था हो। लोकतंत्र में मतदाता ही सबसे बड़ा होता है और ईवीएम वही बताती है।