“अडानी सेठ को पत्रकार रवीश कुमार की लग गई हाय”

सिर चढ़कर बोले घमंड की बदौलत अमीरों की लिस्ट में फिसले, फ्राड का कलंक भी

इंदौर/ मुंबई।

गौतम अडानी सेठ अपने आर्थिक साम्राज्य को बचाने के लिए चारों तरफ हाथ पैर मार रहे हैं, लेकिन वे तेजी से ढलान पर हैं। लोग बतिया रहे हैं कि अडानी सेठ को उनके द्वारा सताए गए पत्रकार रवीश कुमार की हाय लग गई है। दौलत का घमंड ही उन्हें ले डूबा है।
गौरतलब है कि वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने एनडीटीवी को तब छोड़ दिया था, जब गौतम अडानी ने एनडीटीवी के 29 प्रतिशत से भी अधिक शेयर खरीद लिए थे। एक प्रकार वे मालिक बन बैठे। वह जो चाहते थे शायद रवीश कुमार को यह मंजूर नहीं था, इसलिए उन्होंने इस्तीफा दे दिया था।
रवीश कुमार ने एनडीटीवी से इस्तीफा देने के बाद उन्होंने अपना दर्द व्यक्त किया था कि आज की शाम ऐसी शाम है ,जहाँ चिड़िया को अपना घोंसला नज़र नहीं आ रहा। शायद कोई और उसका घोंसला ले गया।”
अडानी ग्रुप को तीन दिन में 65 अरब डॉलर का फटका लगा है। अमीरों की लिस्ट में और फिसल गए हैं गौतम अडानी। अमेरिका की एक शॉर्ट सेलिंग कंपनी हिंडनबर्ग रिसर्च ने पिछले हफ्ते अडानी ग्रुप के बारे में एक निगेटिव रिपोर्ट जारी की थी। इससे अडानी ग्रुप में कोहराम मचा है। ग्रुप की अधिकांश कंपनियों के शेयरों में लगातार गिरावट जारी रही। गौतम अडानी भी अमीरों की लिस्ट में आठवें स्थान पर फिसल गए हैं। इस बीच अदानी ग्रुप में अपना एफपीओ रद्द कर दिया है अदानी इंटरप्राइजेज लिमिटेड के चेयरमैन गौतम अडानी ने कहा कि मार्केट में उतार-चढ़ाव को देखते हुए कंपनी के बोर्ड ने एफपीओ को रद्द करने का फैसला किया है।
अडानी भले ही अपने बचाव के लिए इस तरह की कोई सी भी करतूत करें लेकिन उनका यह अपराध छिपने वाला नहीं है। कहा जा रहा है कि बिना निवेशकों की जानकारी के अडानी ने अपने शेयर बड़ी कीमत पर बेच दिए। यह भी एक बड़ा फ्रॉड है।

एफपीओ वापस नहीं लेते तो मनी लांड्रिंग का आरोप लगता

सोशल मीडिया पर चल रहा है कि अडानी सेठ ने कल रात अपने एफपीओ को यूं ही वापस नहीं लिया। नहीं लेते तो मनी लांड्रिंग का आरोप लगता। बताया जा रहा है कि सेबी और भारतीय राजस्व खुफिया एजेंसी को भनक लग चुकी थी कि इस पब्लिक ऑफर को बेचने में काला धन लगा है, जो टैक्स हेवन देशों से आया। लंदन की एलारा कैपिटल की भारतीय सहायक कंपनी ने मोनार्क नेटवर्थ कैपिटल के साथ मिलकर एफपीओ में पैसा लगाया। मोनार्क एक भारतीय ब्रोकरेज फर्म है और सेबी 2011 में इसके खिलाफ कार्रवाई कर चुकी है। इन दोनों के अलावा 8 और कंपनियों का पैसा भी लगा था। पूरे गड़बड़झाले में यह पता नहीं चला कि 20 हजार करोड़ के एफपीओ में शेयर्स खरीदे किसने?

कई सौदों में हेरफेर

अडानी ने हिन्डेनबर्ग को भेजे जवाब में एलारा कैपिटल से रिश्ते को नकारा है, जबकि बताया जा रहा है कि मोनार्क ने अडानी के साथ मिलकर कई सौदों में हेर–फेर किया, जो हिन्डेनबर्ग की रिपोर्ट में साफ़ है।अडानी के एफपीओ में जेफरीज इंडिया का भी पैसा लगा है। ये सभी उस कंपनी पर दांव खेल रहे थे, जिसका बही–खाता ही संदिग्ध है।