दैनिक अवन्तिका उज्जैन।
महाकाल मंदिर के मुख्य शिखर पर स्थापित स्वर्ण ध्वज मंदिर प्रबंध समिति ने साधारण के बाद मंगलवार को पुनर्स्थापित किया
उल्लेखनीय की कुछ दिन पहले शिखर का ध्वज क्षतिग्रस्त हो गया था जिसे समिति ने खुद निकालकर उसे संधारित कराया। मंदिर का यह धर्म ध्वज
महाराज विक्रमादित्य एवं कालिदास के काल के है। जो कि दूर से ही दिखाई देता है। महाकाल मंदिर की मान्यता है कि, यदि भगवान के दर्शन नहीं हो पाए तो शिखर दर्शन से ही सभी पापों का नाश होता है। शिखर दर्शनम पाप नाशनम भी कहते है। मंदिर के शिखर पर लगा स्वर्ण मंडित ध्वज पुरातन होने के कारण संधारण के अंतर्गत वैदिक विधान से सुदृढ कर पुर्नस्थापित किया गया। समिति द्वारा शिखर का स्वर्ण मंडित ध्वज विधि पूर्वक उतारा गया था। जिसे उप प्रशासक श्रीमती सिम्मी यादव के मार्गदर्शन में संधारण उपरांत नव श्रृॅगारित कर पुनः यथा स्थान पर विधि विधान से पूजन के उपरांत पुर्नस्थापित किया गया। ध्वज पूजन सहायक प्रशासक मूलचंद जूनवाल एवं प्रतीक द्विवेदी द्वारा किया गया। इस कार्य को सुव्यवस्थित व सुचारू रूप से करने हेतु ऊॅंकारेश्वर मंदिर की छत से मुख्य शिखर पर पहुॅंचने के लिए मचान लगाया गया तथा कुशल कारीगरों द्वारा सभी सुरक्षा मापदण्डों का उपयोग करते हुए ताॅंबे व पीतल से निर्मित 12 किलो ग्राम वजनी स्वर्ण मंडित ध्वज को पुर्नस्थापित किया गया।