खुसूर-फुसूर
कडकी में राहत मिली…
सबकों मालूम है और सबको खबर है कि जन्म से लेकर मृत्यु तक साथ निभाने वाली संस्था के दिन बडे खराब चल रहे हैं। आर्थिक स्थितियां बिगडी हुई है। जैसे तैसे काम चलाया जा रहा है। काबिलियत यह है कि प्रति माह वेतन बांटा जा रहा है । प्रदेश के अन्य शहरों में तो वेतन 3-4 माह पीछे चल रहा है। कडकी के हाल में संस्था को एक उपलब्धि मिली है या यूं कहें की पितृ पुरूषों की उधारी वसूलने में कामयाबी मिली है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। ये उधारी भी छोटी मोटी नहीं पूरे 4.63 करोड की मिली है। कभी शहर में एक पाईप बनाने वाली फैक्ट्री हुआ करती थी उसी से संपत्तिकर एवं जलकर की यह राशि लेना थी। मामला न्यायालय में चला और वहां संस्था की और से अधिकारियों ने संस्था का मजबूत पक्ष रखा । संस्था के प्रशासनिक नेतृत्वकर्ता के निर्देश पर दो –दो सिपहसालार वहां पहुंचे थे। फैक्ट्री जिसका बकाया संपत्ति कर एवं जलकर वित्तीय वर्ष सन 1996 – 97 से लेकर सन 2006 – 07 तक का बकाया था जिसमें की फैक्ट्री एवं आवासीय भवनों के जलकर एवं संपत्ति कर की राशि प्राप्त हुई है। मामले में न्यायालय ने संस्था के पक्ष में फैसला दिया है। फैक्ट्री पर बकाया संपत्ति कर एवं जलकर जमा करने के आदेश दिए गए हैं। ये प्रकरण लंबे समय से लंबित था। खुसूर-फुसूर है कि ईश्वर जब देता है तो छप्पर फाड कर देता है। मालवा में एक कहावत और भी है कि यूं तो मिनकी का भाग से सिको नि टूटे ने अगर टूटी जाए तो मिनकी का भाग खुली जाए है। ऐसा ही कुछ संस्था के साथ भी हुआ है कि जब उसकी माली हालत बिगडी हुई है। उसी दौरान उसे अपनी उधारी मिलने वाली है। इससे कडकी में राहत होना तय है।