धर्म का जिक्र बाद में करना पहले सवाल रोटी हो

ऑल इंडिया मुशायरा व कवि सम्मेलन
के मंच से हुआ शायर अखिल राज की किताब लावा का विमोचन

इंदौर। जन चेतना अभियान के आल इंडिया मुशायरे और कवि सम्मेलन की खास बात ये थी कि हर श्रोता की आखरी राय यही थी कि २५ जनवरी की रात शायरी के एतबार से यक़ीनन एक यादगार रात के तौर पर दिमागों में महफूज़ रहेगी।
इस कार्यक्रम में शायर अखिल राज की किताब “लावा” का विमोचन देश के प्रसिद्ध व्यंग्यकार संपत सरल,ख्यात कवि सत्यनारायण सत्तन,पूर्व विधायक अश्विन जोशी, संजय वर्मा और पूर्व पार्षद अंसाफ अंसारी ने किया।
बरेली के नौजवान शायर आशु मिश्रा ने पढ़ा – सुर आपके बिल्कुल मेरी लय से नहीं मिलते, बस इसलिए हम मिलने के जैसे नहीं मिलते।
चंदौसी से पधारे चराग़ शर्मा की शायरी की एक बानगी देखिए – उदास झील की तस्वीर में वो नाव बनाओ, जो देखने पे कहे आंख में बहाव बनाओ। मालेगांव के मुश्ताक अहमद मुश्ताक ने भी अपने अशआर से महफिल को और ऊंचाइयों पर पहुंचाया। संपत सरल को यहां बहुत अच्छी तरह सुना गया। सत्यनारायण सत्तन का धन्यवाद करते हुए उन्होंने पिछले दिनों का एक वाकया बताया कि एक प्रोग्राम में कुछ भक्त उन्हें हूट करने के लिए ही आए थे। वे लगातार बदतमीजी कर रहे थे, तब सत्तन जी ने खड़े होकर उन्हें लताड़ा था और कहा था मैं बचपन से संघ की शाखा में गया हूं और पूरी ज़िंदगी भाजपा की राजनीति की है। ज़िंदगी भर कांग्रेस की आलोचना की है और आज भी करूंगा। मगर कांग्रेस के राज में कभी मेरी राजनीति के कारण मुझे साहित्य के मंच पर हूट नहीं किया गया। इसलिए संपत सरल को भी पढ़ने का हक है। मंजूर देपालपुरी ने पढ़ा – तुम जज़ीरे हो किनारे जैसे, खूब देखे हैं तुम्हारे जैसे।
अशफाक देपालपुरी ने पढ़ा– इश्क की हद से गुजर जाए तो पैसे वापस, वो तेरे सोग में मर जाए तो पैसे वापस।
एस कमाल के मिसरे की आखरी दो लाइनें थीं – बाप से शायद आपको नफरत है राना, जब देखो तब मां पर शेर सुनाते हो…। क़मर साकी ने पढ़ा – रिश्तों में कुछ भेद नहीं कर पाता हूं, मैं उजलत में अंगारे खा जाता हूं। गोविंद गीते पढ़ते हैं – पता करना है ये जाने से पहले, कहां था मैं यहां आने से पहले।
सतलज राहत ने सुनाया – चाहे किस्मत में दाल रोटी हो, मेरे अल्ला हलाल रोटी हो, धर्म का जिक्र बाद में करना, सबसे पहला सवाल रोटी हो।
रईस अनवर के इन अशआर पर दाद मिली – मैंने सहरा में गुजारे हैं वो दिन, जिन में पत्थर भी पसीना छोड़ दे।
तजदीद साकी ने पढ़ा– फकत तनहाई को अपना सहारा कर लिया मैंने,तुम्हारे बाद में सबसे किनारा कर लिया मैंने।
बहुत मेहनत के साथ निज़ामत कर रहे अखिल राज ने अपने फर्ज अदा करते हुए कुछ शेर सुनाए – खफा जिस दिन हुईं तो ये कनीजे मार डालेंगी, तुझे तेरी ये शोहरत की मशीनें मार डालेंगी। मसीहा गर तेरी सच्चाई बतला दूं इन्हें जाकर, तो कब्रों से निकलकर तुझको लाशें मार डालेंगी।