दैनिक अवंतिका उज्जैन।
महाकाल मंदिर में रोज तड़के 4 बजे होने वाली भस्मारती में अटेंडरों का कब्जा बना रहता है। ये अटेंडर ही भस्मारती में शामिल होने वाले वीआईपी श्रद्धालुओं को आगे बैठाने की व्यवस्था करते हैं।
इन अटेंडरों में सरकारी विभागों के कर्मचारियों की संख्या ही सबसे ज्यादा है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या इन अटेंडरों को मंदिर समिति ने मंदिर आकर इस तरह की व्यवस्था करने की अनुमति दे रखी है या ये अपने विभाग की ओर से ड्यूटी करते हुए मंदिर आते हैं। बात जो भी हो लेकिन इन अटेडरों के हाथ में ही रहता है कि वीआईपी श्रद्धालु कब, कहां बैठेंगे। जबकि नियम अनुसार तो मंदिर समिति के कर्मचारियों को ही तय कर श्रद्धालुओं के बैठने की व्यवस्था करना चाहिए। इसमें कोई पक्षपात नहीं होना चाहिए कि कौन कहां बैठेगा। श्रद्धालुओं को अंदर प्रवेश मिलने के बाद जिसे जहां जगह मिलती है उन्हें बैठने देना चाहिए।
शासन-प्रशासन के प्रोटोकॉल से आने
वालों को अधिकारी स्वयं बैठाए
मंदिर में यदि कोई प्रोटोकॉल से वीवीआईपी आता है तो उसे प्रशासनिक अधिकारी पुलिस अधिकारी व मंदिर समिति के अधिकारी मिलकर उचित स्थान पर बैठाने की व्यवस्था कर सकते हैं। उसे प्रोटोकॉल के हिसाब से सम्मान दे। लेकिन सरकारी विभागों से आने वाले इन अटेंडरों के भरोसे न रहे। क्योंकि ये लोग अपना कब्जा जमाकर केवल अपने लोगों को ही बैठाते है। समिति के कर्मचारी बताते है कि भस्मारती में कोई जिला कोर्ट से आता है तो कोई प्रशासन से तो कोई पुलिस की ओर से।
सरकारी विभागों से अटेंडरों की ड्यूटी, इनका
काम रोज मंदिर जाना, दर्शन करवाना
इस तरह से अनेकों सरकारी विभागों ने अपने कर्मचारियों की मंदिर में दर्शन कराने से लेकर भस्मारती में प्रवेश दिलाने आदि की व्यवस्था करने के लिए ड्यूटी लगा रखी है। ये लोग अपने-अपने विभागों से संबंधित प्रोटोकॉल से आने वाले श्रद्धालुओं को मंदिर में वीआईपी गेट से प्रवेश कराने से लेकर उन्हें नंदी हॉल व अन्य जगह पर आगे बैठाने में पूरी मदद करते हैं। या यूं कहे कि उनके लिए जगह तक रोक कर रखते हैं।
