उज्जैन में भी खुली स्कूली शिक्षा विभाग के अफसरों की नींद, बगैर कमेटी निर्णय बढ़ा दी निजी स्कूलों ने फीस…मनमर्जी से बदल दिया कोर्स ……!

विभाग एकत्र कर रहा है स्कूलों से जानकारी
अधिकारियों ने कहा-गड़बड़ी मिलती है तो होगी कार्रवाई

उज्जैन। भले ही उज्जैन का जिला प्रशासन निजी स्कूलों की मनमानी पर शिकंजा कसने का दावा करता हो लेकिन बावजूद इसके कतिपय नामी गिरामी निजी स्कूलों ने न केवल मनमर्जी से फीस की बढ़ोतरी कर रखी है वहीं कोर्स भी बदल दिया गया है। जबकि फीस बढ़ाने के लिए फीस रेग्युलेशन कमेटी की अनुशंसा जरूरी है।

हालांकि जबलपुर में हुए मामले के बाद उज्जैन के जिला शिक्षा विभाग के अधिकारियों की नींद खुली है और निजी स्कूलों की जानकारी एकत्र की जा रही है कि कहीं मनमाने तौर से विद्यार्थियों से शुल्क तो नहीं लिया जा रहा है या फिर मनमर्जी से कोर्स तो नहीं बदल दिया गया है। विभाग के जिम्मेदार अफसरों का यह कहना है कि जानकारी मंगवाई जा रही है और यदि किसी स्कूल में गड़बड़ी मिलती है तो नियमानुसार कठोर कार्रवाई की जाएगी। गौरतलब है कि जबलपुर के कलेक्टर दीपक सक्सेना ने स्कूल माफिया और किताब माफियाओं के बीच चल रहे खेल का खुलासा किया है।
कलेक्टर ने कसी थी लगाम
बता दें कि उज्जैन कलेक्टर नीरज कुमार सिंह ने भी बीते कुछ दिनों पहले शहर के कई निजी स्कूलों पर लगाम कसी थी और नियमों का पालन नहीं करने के कारण जुर्माना भी लगाया था लेकिन इनमें से अधिकांश स्कूल प्रबंधनों ने अपील की है इसलिए जब तक अपील का फैसला नहीं हो जाता तब तक इस दिशा में आगे कुछ  नहीं हो सकता है।
एक बार फिर है उज्जैन में भी डिमांड
यूं भले ही जबलपुर में कलेक्टर द्वारा उठाए गए कदम के बाद शिक्षा विभाग की नींद खुली हो और स्कूलों से जानकारी निकाली जा रही है लेकिन जिस तरह से कलेक्टर नीरज कुमार सिंह ने निजी स्कूलों पर लगाम कसी थी उससे स्कूल और किताब माफियाओं पर हाथ डालने की डिमांड उज्जैन में भी बनती है कि कलेक्टर इस मामले को गंभीरता से लेकर गहनता से जांच करेंगे।
हूबहू ऐसा तो  उज्जैन में भी हो रहा होगा……

मोटी कमाई के लिए निजी स्कूल वाले इतना नीचे गिर सकते हैं कि बच्चों को कोर्स के नाम पर फर्जी पुस्तकों से पढ़ा रहे हैं। कमाई के लिए हर साल कोर्स बदल रहे हैं। नए कोर्स की पुस्तकें भी किताब माफिया व स्कूल वाले मिलकर तय कर रहे हैं। इस मामले मे सरकार के तय नियम-कायदों को ठोकर में रख दिया गया। न कोई एक्सपर्ट कमेटी की सिफारिश, न कोर्स बदलने की कोई अनुशंसा, मनमर्जी से हर बरस पुस्तकें बदलकर करोड़ों कमाए जा रहे हैं। हूबहू ऐसा तो उज्जैन में भी हो रहा होगा बरसों से..!
तब पता चलता है कि किताबें इस साल भी नई हैं

स्कूल माफिया पैरेंट्स को मार्च में कोर्स की किताबों की लिस्ट दे देते   है, तब पता चलता है कि किताबें इस साल भी नई हैं, जबकि स्कूल वाले किताब माफिया से मिलकर दिसंबर में ही सेट कर लेते हैं कोर्स की किताबें। हैरत की बात है कि नए कोर्स के नाम से ये पुस्तकों की केवल छपाई का खर्च होता है। आईएसबीएन नंबर फर्जी डाल दिया जाता है, ताकि पैरेंट्स को लगे कि ये नियम-कायदे के बाद बाजार में आई कोर्स की किताबें हैं, जबकि ये नई किताबें सिर्फ स्कूल माफिया और प्रकाशन माफिया की मिली-जुली सांठगांठ का नतीजा भर हैं।
बगैर कमेटी नहीं हो सकता

स्कूली शिक्षा विभाग के अफसरों का कहना है कि यदि कोर्स को बदला जाता है तो इसके लिए एक्सपर्ट कमेटी की सिफारिश होना जरूरी होती है वहीं फीस बढ़ाने के लिए भी फीस रेग्युलेशन कमेटी की अनुशंसा जरूरी है। बावजूद इसके उज्जैन के कतिपय निजी स्कूलों द्वारा न केवल फीस बढ़ा दी जाती है वहीं कोर्स भी नया ही दिया जाता है। कुल मिलाकर ये सब किताबों के प्रकाशक और स्कूल प्रबंधन की सांठगांठ का ही नतीजा है।
इनका कहना है

निजी स्कूलों से जानकारी एकत्र की जा रही  है। यदि कहीं कोई नियम विरूद्ध कोर्स बदला गया या फिर मनमर्जी से फीस बढ़ाई गई है या फिर अभिभावकों की तरफ से ऐसी कोई भी शिकायत मिलती है तो संबंधित स्कूलों पर कार्रवाई होगी।
गिरीश तिवारी, एडीपीसी