उज्जैन में वाहन ऋण : दो पहिया में 50 और चौपहिया में 20 फीसदी डिफॉल्टर

फायनेंस कंपनियां फिर भी घाटा पाटने में सक्षम ,डाउन पेमेंट, प्रारंभिक किश्त, सिजिंग के बाद पून: वाहन विक्रय से हो रही पूर्ति

दैनिक अवन्तिका उज्जैन

आमदनी अठन्नी और खर्चा रूपय्या की तर्ज पर शौक-शौक में वाहन खरीदने वाले डाउन पेमेंट में वाहन फायनेंस तो करवा लेते हैं लेकिन किश्त नहीं भरते हैं। फायनेंस कंपनियों के आंकडे कहते हैं कि उज्जैन में दो पहिया वाहनों में 50 फीसदी और चौपहिया वाहनों में 20 फीसदी वाहन सिजिंग करना पड रहे हैं। इनके ऋणग्रहिता डिफाल्टर साबित हो रहे हैं। इसके बाद भी कंपनियों को कोई घाटा नहीं है।
शहर में नए वाहनों की खरीदी का जमकर क्रेज चल रहा है। वाहन मेले में खरीदारों की भीड़ उमड़ी हुई हैं। जमकर दो पहिया और चौपहिया वाहन खरीदे जा रहे हैं। इनमें से अधिकांश वाहन फायनेंस पर उठाए जा रहे हैं। कंपनियां फायनेंस देने के लिए आतूर बैठी रहती हैं। इसके विपरीत कंपनियों के आंकड़े बता रहे हैं कि पिछले तीन सालों में जितने वाहन फायनेंस हुए हैं उनमें से दो पहिया वाहनों में औसत करीब 50 फीसदी वाहनों में किश्तें न आने पर वाहन सीज किए गए। यानिकी संबंधित वाहन का ऋणग्रहिता डिफाल्टर होकर कालातीत ऋणी रहा और उसके वाहन को संबंधित फायनेंस कंपनी ने सीज करते हुए बाद में बेचकर उससे अपनी पूर्ति की है। यही हाल चौपहिया वाहनों में पिछले तीन सालों में औसत 20-25 फीसदी तक बताया जा रहा है। तकरीबन सभी फायनेंस कंपनियों के आंकड़े तीन साल के आॅनलाइन ही सामने देखे जा सकते हैं।

ऐसे होती है पूर्ति
जानकारों का कहना है कि कोई भी फायनेंस कंपनी शुरूआत में ऋणग्रहिता से डाउन पेमेंट लेकर वाहन फायनेंस करती है। इसके बाद भी वाहन कंपनी के नाम ही रहता है। डाउन पेमेंट के बाद संबंधित ग्रहिता कुछ किश्त जमा करता है। जो कि मय ब्याज के होती है। उसके बाद ही वह गडबड करता है। तीन किश्त बकाया होने पर कंपनी कालातीत के रूप में उसे दर्शा कर वाहन सिजिंग की सूचना देती है। अगर संबंधित किश्त जमा करता है तो ठीक वर्ना वाहन सीज किया जाता है। इसके बाद वाहन को अन्य जिलों में ले जाकर विक्रय कर दिया जाता है। इसमें पालिसी के मान से ही दर निर्धारण कर वाहन का विक्रय होता है। इसमें संबंधित ऋण ग्रहिता का डाउन पेमेंट के साथ जितनी किश्त उसने भरी वह सभी डूब जाती है ।

कंपनियां फिर भी घाटे में नहीं
फायनेंस के जानकारों के अनुसार वाहन ऋण पर लेने वाले ये समझ कर किश्त नहीं भरते हैं कि उनका कोई घाटा नहीं है जबकि कंपनियों को कोई घाटा नहीं होता है। कंपनियां हर स्तर पर अपने फायनेंस की पूर्ति कर लेती है। यही नहीं मूल कीमत से भी कई बार 110 और 120 फीसदी तक पूर्ति की जाती है।

ऐसे समझें इसे
उदाहरण के तौर पर एक वाहन में कंपनी ने 70 हजार फायनेंस किए और ऋणग्रहिता ने डाउन पेमेंट 10 हजार दिया। इसके बाद 4 माह तक उसने ढाई ढाई हजार की किश्त जमा कर कुल 10 हजार और जमा किए। ऐसे में ऋणग्रहिता ने कुल 20 हजार जमा किए हैं मय ब्याज के। अब वह तीन किश्त चूक गया तो या तो एक साथ तीन किश्त अदा कर रनिंग में आए या फिर वाहन सीज कंपनी करती है। वाहन के बीमा के मान से उसका डिप्रिशिएशन हर वर्ष 10 फीसदी मूल किमत में कम होता है। कंपनी मूल किमत में 20 हजार पहले ही ले चुकी है। उसके बाद उसी वर्ष में वाहन को सीज कर अन्य जिला में बेच देती है। ऐसे में कंपनी को एक बार फिर करीब 80-90 फीसदी कीमत फिर मिल जाती है। पूर्व में कंपनी को किमत के मान से 35 फीसदी रकम आ ही चुकी है। ऐसे में कंपनी को कूल 105 से 115 प्रतिशत रकम मिल ही जाती है।

अधिकांश स्लम क्षेत्र में गड़बड़
कंपनियों के फायनेंस अनुभाग में रिकवरी से जुड़े कार्यपालन अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि अधिकांश ग्रामीण एवं शहर के स्लम क्षेत्र में लोग वाहनों का शोक पूरा करने के लिए ऐसा कर रहे हैं। कई बार कंपनियां जीरों प्रतिशत डाउन पेमेंट पर भी फायनेंस स्कीम निकालती है। ऐसे में दस्तावेजों की जरूरत ही होती है। ऐसी स्कीम कम लागत के छोटे वाहनों पर ही निकाली जाती है। इसमें भी दो चार किश्ते भी संबंधित ने जमा कर दी तो कंपनी का ही भला होता है। जानकारों का कहना था कि ऐसे ऋणग्रहिताओं को अपने सिविल से भी कोई लेना देना नहीं होता है।