एक माह में ही ’मोहन’ ने मोहा मन….

उज्जैन। उज्जैन के निवासी डॉ. मोहन यादव के हाथों में प्रदेश की सत्ता है। हाल ही में उनके कार्यकाल का एक माह पूरा हुआ है लेकिन इस एक माह की अवधि में ही उन्होंने पूरे प्रदेशवासियों का मन मोह लिया है। वे अपनी कथनी और करनी में अंतर बिल्कुल नहीं रखते है वहीं जिस तरह से उनके फैसले सामने आ रहे है वे भी उनकी कुशल प्रशासनिक क्षमता के ही परिचायक माने जा सकते है।

सफलता की राह में कांटे भी कम नहीं थे

डॉ. मोहन यादव कहने को सिर्फ एक नाम और जानने को एक चेहरा हो सकते हैं, लेकिन इनके जीवन के इतिहास के पन्नों को पलटेंगे तो आप जानेंगे कि इनकी सफलता की राह में कांटे भी कम नहीं थे, जो चुभकर दर्द भी बहुत देते थे  लेकिन जब लक्ष्य जनसेवा के साथ ही प्रदेश और देश के विकास का हो तो बड़ी से बड़ी बाधा भी आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती है। भारतीय जनता पार्टी का एक कर्तव्यनिष्ठ कार्यकर्ता और जनता का सच्चा सेवक मध्य प्रदेश का मुखिया बना और संकल्प लिया कि मध्य प्रदेश को न सिर्फ नयी बुलंदियों पर पहुंचाएंगे, बल्कि देश का नंबर एक राज्य भी बनाएंगे। मजदूर परिवार से आने वाले डॉ. मोहन यादव को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद कार्य करते हुए अब एक महीना पूरा हो गया है, ऐसे में इसकी चर्चा भी हो रही है।

प्रदेश में बड़ा बदलाव नजर आता है

नई सरकार और नए सीएम डॉ. मोहन यादव के कार्यकाल के 30 दिन बाद मध्य प्रदेश में बड़ा बदलाव नजर आता है। बीते 30 दिनों के क्रियाकलाप को देखने पर पता चलता है कि डॉ. मोहन यादव प्रदेश के लिए दमदार मुखिया साबित हो रहे हैं। यूं तो किसी मुख्यमंत्री के कामकाज का आंकलन सिर्फ एक माह में नहीं कर सकते, लेकिन मोहन यादव इस मामले में अपवाद हैं। प्रदेश में आए नए नेतृत्व के बाद सरकार और उससे जुड़े फैसलों में गति आई है। सीएम डॉ. यादव तेजी से बड़े-बड़े और ठोस फैसले ले रहे हैं, जिसकी बानगी शपथ के बाद तत्काल लिए गए निर्णयों को देखने पर मिलती है।

इस पहल का जबरदस्त तरीके से स्वागत किया

13 दिसंबर को शपथ लेने के बाद मंत्रालय में  डॉ. मोहन यादव ने जो पहला आदेश जारी किया, उसमें धार्मिक स्थलों पर लगे लाउडस्पीकर की आवाज नियंत्रित करने और उन्हें हटाने, ध्वनि प्रदूषण रोकने का निर्णय था। जनता ने इस पहल का जबरदस्त तरीके से स्वागत किया। इसके अलावा भोपाल में स्लाटर हाउस को शहर के बाहर भेजा जा रहा है। अवैध बूचड़खाने पर लगाम कसने के लिए भी पहल शुरू हो गई है। खुले में मांस बेचना प्रतिबंधित कर जनता का दिल भी मोहन यादव ने जीता है। साथ ही रजिस्ट्री करने के साथ ही नामांतरण हो जाने की प्रक्रिया ‘सुशासन’ की पहल की परिचायक है। इसके साथ ही भोपाल में एक दशक से ज्यादा पुराने बीआरटीएस कॉरिडोर को भी हटाने का निर्णय हुआ है।

संवेदनशीलता व गंभीरता

मुख्यमंत्री की संवेदनशीलता व गंभीरता को भी प्रदेशवासियों ने सिर्फ एक महीने के अंदर बखूबी समझ लिया है। गुना बस हादसे के बाद मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव तत्काल गुना पहुंच जाते हैं। वह यहां पहले तो अस्पताल जाकर घायलों से मिले उन्हें हरसंभव सहायता देते हुए ढांढस बंधाते हैं और हादसे में असमय काल कवलित लोगों के परिजनों को आर्थिक मदद देने के बाद साथ ही घटना को लेकर विभाग के प्रमुख सचिव, ट्रांसपोर्ट कमिश्नर, कलेक्टर और एसपी को बिना किसी देरी के हटा भी देते हैं। आरटीओ और सीएमओ को भी सस्पेंड कर दिया जाता है। प्रदेश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है, जबकि एक बस हादसे के बाद मुख्यमंत्री ने बड़े अधिकारियों पर कार्रवाई की हो। जनता के बीच इसे सुशासन के तौर पर भी देखा जा रहा है।

रिवाज को भी बदल दिया है

प्रदेश में अब तक वल्लभ भवन, भोपाल से ही सरकार चलती थी, लेकिन नए मुखिया ने उस रिवाज को भी बदल दिया है। पहली अधिकारी कैबिनेट बैठक जबलपुर में आयोजित हुई। इसके साथ ही अफसरशाही पर अंकुश लगाने के लिए कड़ी पहल भी गई है। एक ड्राइवर को ‘औकात’ दिखाने की बात करने वाले कलेक्टर को सीएम ने हराकर यह बता दिया कि हर नागरिक का सम्मान सर्वोपरि है। डॉ. मोहन यादव ने संदेश दिया है कि कोई भी अफसर, सरकार अपने हाथ में नहीं लेंगे। राजनीतिक नेतृत्व ही सरकार चलाएगा। इतना ही नहीं, प्रदेश में अब अफसरों की योग्यता के आधार पर ही काम दिया जा रहा है।

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