विदर्भ हिंदी साहित्य सम्मेलन की साहित्यिकी गोष्ठी में बिखरी काव्य की सुरुचिपूर्ण छटा

मुंबई। साहित्य ही भारत की आत्मा है और युगों- युगों से हमारा साहित्य जन कल्याण एवं सामाजिक सरोकारों के लिए निरंतर प्रयासरत है। उपरोक्त उद्गार विदर्भ हिंदी साहित्य सम्मेलन की साहित्यिकी गोष्ठी के अंतर्गत आयोजित कवि सम्मेलन में प्रमुख अतिथि के रूप में बोलते हुए महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी, मुंबई के कार्यकारी सदस्य और वरिष्ठ साहित्यकार अजय पाठक ने व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि भगवान श्री राम को कैकई के मांगने पर वनवास मिला, ऐसी धारणा जनमानस में व्याप्त है, लेकिन कैकई के व्यक्तित्व के दूसरे पहलू के रूप में उनकी प्रेम और करुणा की भावना को अधिकांश लोग नहीं जानते। उन्होंने कहा कि ऐसी अनेक जन श्रुतियों और मान्यताओं को साहित्य के माध्यम से ही सुधारा जा सकता है। इस अवसर पर विशेष अतिथि के रूप में सामाजिक कार्यकर्ता संजय सिन्हा उपस्थित थे। सम्मेलन का संचालन डॉ. विनोद नायक ने किया और अतिथियों का स्वागत प्राध्यापक आदेश जैन ने किया।

मां सरस्वती की वंदना प्रभा मेहता ने प्रस्तुत की। प्रस्तावना हेमलता मिश्र मानवी ने रखी। इस मौके पर अमिता शाह द्वारा रचित पुस्तक “सूर्य आराधना” का विमोचन भी किया गया। कवि सम्मेलन में तन्हा नागपुरी, गोपाल व्यास सागर, श्रीमती माधुरी राऊलकर, रूबी दास अरु, कमलेश चौरसिया, डॉ भोला सरोवर, नीलिमा गुप्ता, हेमलता मिश्र मानवी, अमित शाह अमी, माजिद बेग, मुगल शहजादा, विमलेश सूर्यवंशी, शादाब अंजुम, स्वप्न जगदाले, रामकृष्ण सहस्त्रबुद्धे, रंजन श्रीवास्तव, रमेश मोंदेकर, माधुरी मिश्रा, युवराज चौधरी, बालकृष्ण महाजन, श्रीमती प्रभा मेहता, विवेक असरानी, कृष्णा कपूर, गुलाम मोहम्मद खान आलम, हफीज शेख नागपुरी, नंदिनी सुदामल्ला, आरिफ काजी जोश, काशीनाथ जांभूलकर, संजीव बहादुर, सरोज गर्ग, पूनम मिश्रा, वैशाली मदारे, संतोष बुद्धराजा, सुदिप्ता बैनर्जी, अशोक कुमार गांधी, मोनिका अग्रवाल, उमर अली अनवर और प्रा. आदेश जैन ने अपनी विविधतापूर्ण कविताओं के ज़रिये समाज के विभिन्न रंगों की छटाऍं बिखेरीं। सभी का आभार शादाब अंजुम ने प्रकट किया।