खुसूर-फुसूर

दो धारी तलवार का काम

शहर के एक स्कूल पर घर बनाने वाली अर्द्धशासकीय संस्था ने जमीन की रिकवरी निकाल दी। मामला 2019 में सामने आया था। तत्कालीन दौर में जमीन की नपती हो गई थी। उसके बाद संस्था ने जमीन को लेकर कोई आवाज नहीं निकाली। स्कूल की और से मामला अभी राजस्व के न्यायालय में लंबित है। इसका निर्णय होने से पहले ही संस्था दल बल के साथ जमीन पर कब्जा लेने मंगलवार को पहुंची थी। इस दौरान कागजी स्तर पर सब कुछ कर लिया गया था। स्कूल प्रबंधन भी कमजोर नहीं था । उसने अपने स्तर पर दल-दल के अधिकारियों के तोड ढूंढे और एक-एक कर सबको ठंडा कर दिया। इनमें से अधिकांश के चून्नू-मुन्नू इसी स्कूल में कुलाचें भरते हैं। बुधवार को दल-दल में शामिल अधिकारियों ने जमीन पर कब्जा लेने जाने की बजाय स्कूल प्रबंधन को पूरा मौका दिया और गुरूवार को स्थगन मिलने की खबर आने के बाद अधिकारी जमीन का कब्जा लेने दिखावे के लिए पहुंच गए और यहां दावे के साथ कई सारी बातें कहीं। यहां तक कहा कि जमीन तो हमारी ही है। खास तो यह है कि ऋषिनगर का निर्माण 1978 में हुआ। खुसूर-फूसूर है कि अव्वल तो संस्था की हरकत उस मां जैसी है जिसने अवैध संतान पैदा कि और सालों बाद उसे अपना बताया जब संतान किसी और के वंश वट में शामिल होकर उसके नाम से जानी जाने लगी। पिछले 40 सालों में विस्मृत इस जमीन को लेकर संस्था को वैसे ही याददाश्त लौटी जैसे किसी दुर्घटना में घायल की याददाश्त चली जाती है और सालों बाद किसी कारण से फिर से उसके सिर पर चोंट लगने पर उसे फिर से सभी बातें याद आ जाती है। स्कूल प्रबंधन जमीन को लेकर सजग है वह संस्था को नाकों चने चबवाने की तैयारी करते हुए कानूनी दांव- पेंच में भी बराबर सालों चप्पल रगडवाने की तैयारी करके बैठा है । ये जमीन मंदिर की 45 बीघा नहीं है जिसे रसगुल्ले की तरह हजम कर लिया जाए और न समिति के सदस्य बोलें और न ही जिम्मेदार ही बोलें।

 

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