April 25, 2024

इंदौर। अग्रसेन महासभा की ओर से शादी के 60 साल पूरे कर चुके बुजुर्गों की रविवार को दोबारा शादी हुई। दो दिन तक चले इस आयोजन में देशभर से आए बुजुर्ग दंपती शामिल हुए। इनमें कुछ ऐसे बुजुर्ग दंपती भी हैं, जिनकी शादी कम उम्र में ही हो गई थी, इसलिए उन्हें तब का तो कुछ याद नहीं, पर दोबारा शादी और रस्में निभाकर उन्हें बहुत खुशी महसूस हुई।

ने इन दंपती से बात की। सभी अपनी खुशी का इजहार करते नहीं थक रहे थे। उन्होंने बताया कि वैवाहिक जीवन के 60 बरस में क्या उतार-चढ़ाव आए, लड़े-झगड़े पर साथ बने रहे। शादी के 60 साल पूरे करने वाले 60 जोड़ों के साथ मिलकर 22 और 23 अप्रैल को आयोजन किया गया। ये जोड़े अलग-अलग राज्यों और शहर के हैं। उनके साथ उनके परिजन भी आए, जिन्होंने जमकर धमाल किया। शनिवार को मेहंदी और संगीत का प्रोग्राम हुआ और आखिरी दिन रविवार को सुबह हल्दी कार्यक्रम के बाद देर शाम सभी जोड़ों का बाना निकाला गया।

बग्गी और विंटेज कार में सवार होकर दूल्हा-दुल्हन निकले। घर वाले बैंड की धुन पर नाचते गाते हुए उनके साथ चल रहे थे। सालों बाद फिर से दूल्हा-दुल्हन बनने पर बुजुर्ग कपल बहुत ही उत्साहित दिखे। रात को वरमाला के प्रोग्राम के साथ इसका समापन हुआ। बुजुर्ग दूल्हा-दुल्हन ने अपनी शादी के दिनों को याद किया और अनुभव बताए।

 पढ़िए उन्हीं की जुबानी…

77 साल की उम्र में फिर से दुल्हन बनी तारा धानुका ने बताया- ‘मैंने 8वीं तक पढ़ाई की थी। 14 साल की उम्र में मेरी शादी हो गई। तब क्या हुआ कुछ भी पता नहीं है। उस समय वरमाला करने गई तो घूंघट निकाल दिया था। जल्दी-जल्दी चलकर आने लगी तो बहुत जोर से गिर गई। रोने लगी। फिर मेरी बहन ने मुझे उठाया। घरवालों ने विदा किया, तब भी खूब रोने लगी। मैंने कहा कि मेरे साथ किसी को भेजो। तब छोटी बहन भी मेरे साथ ससुराल आई थी। उस समय नासमझ थे। शादी और शादी की रस्मों की कोई यादें नहीं हैं, लेकिन अब दोबारा अपने ही पति से शादी करके अच्छा लग रहा है।’

तारा धानुका की शादी डॉ. कैलाशचंद्र धानुका से हुई। डॉ. कैलाशचंद्र 83 साल की उम्र में फिर से दूल्हा बने। शादी के समय को याद करते हुए डॉ.धानुका बताते हैं कि’शादी को 62 साल हो गए हैं। 20 साल की उम्र में शादी हुई थी। इंदौर के पास गांव था राऊ अब तो शहर हो गया है, वहां शादी हुई थी।’

‘हम उज्जैन के रहने वाले हैं, बाद में इंदौर शिफ्ट हो गए। उज्जैन से बस से बारात लेकर राऊ गए थे। स्कूल के अंदर बारात ठहराई गई थी। तब दोने-पत्तलों में खाना खाया था। उस अनुभव की आज अगर तुलना की जाए तो सारा समय ही बदल गया है। अब सारी चीजें दिखावे की हो गई हैं। सारी चीजें धन और वैभव की हो चुकी हैं। प्रेम दिन प्रतिदिन कम होता जा रहा है।’

उन दिनों शादियों में बिखराव नहीं था…

 

‘उन दिनों की शादियों में बिखराव लगभग शून्य था। आज जो शादियां होती है, उनमें बिखराव बहुत ज्यादा देखने को मिल रहा है। जितने भी अग्रणी समाज हैं, उन्हें इस विषय को देखना चाहिए। हमें उद्देश्य पता होना चाहिए तब बिखराव में कमी आएगी। उन दिनों ज्यादा शादी प्रस्तावित होती थी। उसमें मूल रूप से माता-पिता का ही भाग रहता था। मेरे मामले में लड़की को पसंद जरूर मैंने किया था लेकिन लड़की प्रस्तावित पिता ने ही की थी।

हम दोनों में अनबन तो नहीं हुई कभी लेकिन मेरे जीवन का एक अनुभव है। जब कुछ नहीं था। बहुत गरीबी की हालत थी। उस समय मेरी पत्नी ने कभी अनबन की बात नहीं की। लेकिन जैसे ही धन संपदा इकट्‌ठा हो गई। तब जरूर कुछ अनबन शुरू हो गई। धन व्यक्ति को समृद्धि और सुख के साथ-साथ में अशांति भी देता है, इसलिए धन से उतना अटेचमेंट नहीं रखना चाहिए।

धन केवल इंसान के जीने का माध्यम है। इस आधार के ऊपर काम करें तो जीवन सुखी रहेगा। शादी भी सुखी रहेगी। मेरी शादी में पूड़ी-सब्जी, रायता और एक मिठाई बनी थी लेकिन उस समय इतना आनंद रहता था। अब करोड़ों रुपए शादी में खर्च हो जाते हैं लेकिन फिर भी आनंद नहीं आता है। विचारों का बिल्कुल ही परिवर्तन हो गया है।’

तब चने की दाल और कढ़ी बनी थी….

मंडला जिले से आए 88 साल के श्याम सुंदर अग्रवाल कहते हैं कि ‘1957 में शादी हुई थी। तब मेरी उम्र 22 साल थी। रिश्तेदार ही रिश्ता तय करते थे। हम लोग लड़की नहीं देखते थे। नरसिंहपुर के पास की ससुराल है। ट्रेन से बारात गए थे। रसोई में तब चने की दाल और कढ़ी बनती थी। ससुराल में मिठाई की दुकान ही थी तो मीठे में बहुत चीजें बनी थीं। आज तक कभी हमारी लड़ाई नहीं हुई। हम पहले दवाई की दुकान चलाते थे।’ श्याम सुंदर अग्रवाल की पत्नी शशिकला देवी अग्रवाल 86 साल की है। 16 साल की उम्र में उनकी शादी तय हो गई थी। इस उम्र में दुल्हन बनने पर वो कहती हैं कि ‘बच्चों का शौक है। हमें फिर से दूल्हा-दुल्हन बनते देख उन्हें ही नहीं हमें भी खुशी हो रही है।’

दोनों में झगड़ा हुआ लेकिन तुरंत खत्म भी हो गया: बाबूलाल….

इंदौर के रहने वाले बाबूलाल अग्रवाल 82 साल के हैं। उनकी शादी 18 साल की उम्र में तय हो गई थी। वे बताते हैं कि’हमारी चलती नहीं थी। माता-पिता जो करते थे वो सही था। महू में ससुराल है। लड़के-लड़की को देखने का काम नहीं था। बहुत साधारण बारात गई थी। नुक्ती, जलेबी, चक्की, खोपरा पाक ये मैन आइटम बनते थे। जीवन में कभी एक-दूसरे से झगड़ा नहीं हुआ। एक-दो बार हुआ था तो चट मंगनी-पट ब्याह की तरह खत्म भी हो गया। बीते दो दिनों से जो अनुभव हो रहा है वो सबसे अच्छा अनुभव है। शादी को 63 साल हो गए हैं लेकिन ये जो समय आया है वो कभी वापस नहीं आ पाएगा।’ बता दें दुल्हन बनीं उनकी पत्नी धापू बाई 75 साल की हैं। वे कहती हैं कि ‘पहले बड़े लोग जो तय करते थे वो होता था। इंदौर में दो दिन से रुकी हुई हूं, अच्छा लग रहा है।’

ऐसे आया शादी के 60 साल पूरे कर चुके दंपती की दोबारा शादी का आइडिया….

दरअसल, अग्रेसन महासभा की मेजबानी में इंदौर में दो दिन का एक अनूठा प्रोग्राम आयोजित किया गया। इस आयोजन के प्रमुख संयोजक मोहनलाल बंसल है। वे 77 साल के हैं और शांति निकेतन में रहते हैं। 22 अप्रैल को उनकी शादी को 60 साल पूरे हो गए। वे इस मौके पर परिवार के साथ तीन दिनों के लिए बाली (इंडोनेशिया) घूमने जाने वाले थे। इस बीच उन्होंने अपने परिचित अरुण अग्रवाल (आष्टा वाले) से बात की, उन्हें भी बाली चलने को कहा। इसके साथ ही इस मौके पर उन्हें कुछ नया करने का विचार भी आया। बातों-बातों में ये बात निकली कि क्यों न शादी के 60 साल पूरे करने वाले ऐसे और लोगों के साथ मिलकर एक आयोजन किया जाए।