उज्जैन। बाजार में NCERT की नकली किताबों का विक्रय चल रहा है। एक ही कक्षा की एक ही विषय की किताबों के दाम अलग-अलग वसूले जा रहे हैं। एक का कागज भी ठीक है और प्रिंटिंग भी बेहतर है वहीं दुसरी किताब का कागज भी हल्का और प्रिंटिंग भी गडबड बताई जा रही है। इसी में कमीशन का फेर होने से कतिपय विक्रेता अच्छा लाभ लेने के लिए नकली किताबें बेच रहे हैं ।
प्रशासन की पहल से इस वर्ष पुस्तक मेले का आयोजन किया गया था। हरिफाटक ब्रिज के नीचे हाट बाजार में दुकानें लगवाई गई थी। इसके चलते पालकों को हल्की राहत मिली थी। इस राहत के विरूद्ध लाभ कमाने वालों ने दुसरा तरीका निकाल लिया है। इसके तहत पालकों की जेब हल्की की जा रही है। इसके तहत NCERT की नकली किताबों को अधिक रेट का बनाकर बाजार में लाया गया है और इन किताबों को बेच कर भारी लाभ कमाने की स्थिति सामने बताई जा रही है।
ऐसे सामने आ रहा नकली का खेल-
सीबीएसई से मान्यता रखने वाले शहर के एक स्कूल में पढने वाले एक ही कक्षा के विद्यार्थियों के पास राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद की किताबें है। बच्चों की एक ही विषय की किताब में इतना अंतर है कि उसे देखने के बाद सवाल खडे होना लाजमी है। एक बच्चे के पास मौजूद किताब का कागज चमकदार है, कवर पर सामने और पीछे सुंदर मुद्रण है। यही नहीं उसके शब्द भी बगैर आंखों पर जोर दिए ही पढे जाने वाले हैं जबकि कुछ बच्चों की किताबों का कागज पतला और कमजोर किस्म का है। मुद्रण की स्थिति ऐसी है कि बच्चों को आंखों पर जोर देकर उसे पढने की मजबूरी है। कवर पृष्ठ पर सामग्री का विवरण भी कमजोर है। मुल्य एक सा है। सवाल यह खडा हो रहा है कि एक ही किताब में इतना अंतर कैसे और क्यों है। जानकारों के अनुसार एनसीईआरटी की असल किताब संबंधित प्रकाशक ने अच्छे कागज का इस्तेमाल कर और प्रमाणित आधार पर प्रकाशित की है। इसकी बजाय उसकी नकल छापने वाले ने कमीशन और बचत के मान से घटिया कागज पर किताब छापी और बाजार में लाया है। इसी लिए दोनों के शब्द का फांट भी अलग है। सीधे तौर पर बगैर अधिकार किताबों का घटिया प्रकाशन कर उसे बाजार में चलाकर अच्छी आय बटौरने के लिए यह सब किया धरा है। इसे लेकर अब तक एनसीईआरटी की और से कुछ भी स्पष्ट नहीं किया गया है। इसके चलते ऐसी किताबों को छापने वाले बाजार में मजे मार रहे हैं और कतिपय दुकानदार इससे तगडा कमीशन कमा रहे हैं।
कमीशन के लिए किया जा रहा खेल-
पुस्तकों के विक्रय से जुडे सूत्रों का कहना है कि कमीशन के लिए बाजार में यह खेल खेला जा रहा है। इसके चलते बाजार में नकली किताबों को बेचने पर मोटा कमीशन मिल रहा है। एनसीईआरटी के डिपो एवं सप्लायर से मिलने वाला कमीशन मात्र 10 -12 प्रतिशत ही रहता है। इसके विरूद्ध नकली प्रकाशक उनकी किताबें बेचने पर 20-30 प्रतिशत तक कमीशन दे रहे हैं। उनकी किताबों में वे इस मार्जिन को विक्रेता को दे रहे हैं। इसी के चलते नकली पुस्तकों का प्रकाशन घट्यिा कागज पर कमजोर मुद्रण के साथ किया जा रहा है।
शिक्षा विभाग एवं प्रशासन का नहीं ध्यान-
घटिया कागज एवं कमजोर मुद्रण होने से बच्चों की आंखों पर पढाई के दौरान सीधे तौर पर इसका असर आंखों पर होता है।कागज कमजोर होने से किताबें जल्दी ही फट जाती है। इससे आर्थिक बोझ पालकों पर पडता है। इसके बावजूद शिक्षा विभाग एवं स्कूलों के संचालकों को इससे कोई फर्क नहीं है। किताबों की घटिया हालत को लेकर कोई शिकायत नहीं की जा रही है।