April 20, 2024

ब्रह्मास्त्र उज्जैन। शिप्रा शुद्धिकरण की मांग को लेकर दत्त अखाड़ा घाट पर 5 दिनों तक धरना देने वाले साधु-संत अब 22 दिसंबर को निजी वाहनों से देवास व इंदौर जाएंगे तथा यह देखेंगे कि शिप्रा कहां-कहां से अन्य नदी-नालों से प्रदूषित हो रही है।

शासन-प्रशासन द्वारा शिप्रा को प्रदूषित होने से रोकने के लिए क्या-क्या प्रयास किए जा रहे हैं। यह जानकारी सोमवार को जंतर-मंतर के पास गऊघाट स्थित जगदीश मंदिर परिसर में महंत डॉ. रामेश्वर दास महाराज ने पत्रकारों से चर्चा में कही। महाराज ने कहा कि वर्तमान में शिप्रा में श्रद्धालुओं को मजबूरन दूषि पानी में ही स्नान करना पड़ रहा है। शिप्रा शुद्धिकरण के लिए शासन-प्रशासन के आश्वासन पर सशर्त उन्होंने अपना धरना समाप्त किया था।

भोपाल से प्रमुख सचिव आए और साधु संतों से मिले बिना चले गए, काम क्या करेंगे

पिछले दिनों भोपाल से प्रमुख सचिव आए थे उन्होंने अकेले ही जाकर निरीक्षण कर लिया। साधु-संतों को साथ ले जाना भी उचित नहीं समझा। क्योंकि शिप्रा नदी से जुड़ी वस्तुस्थिति से साधुसंत ही अधिक बता सकते हैं पर अधिकारी अपने कर्मचारियों से ही पूछ कर चले गए। इससे साधु- संतों में नाराजगी है। इसके बाद संतों ने बैठक कर निर्णय लिया कि 22 दिसम्बर को भी साधु-संत उज्जैन से वाहनों से देवास व इंदौर क्षेत्र का निरीक्षण देखे  कि खान नदी का गंदा व दूषित पानी शिप्रा में कहां मिल रहा है। उसके बाद ही सभी साधुसंत मिलकर तय करेंगे कि आगे क्या करना है। बैठक में महाकाल मंदिर स्थित महानिर्वाणी अखाड़े के महंत विनित गिरि महाराज, महामंडलेश्वर ज्ञानदास महाराज, भगवान दास महाराज, श्री क्षेत्र पंडा समिति के अध्यक्ष पंडित राजेश त्रिवेदी, महाकाल मंदिर के पंडित महेश पुजारी सहित अखाड़ों व अश्रमों से जुड़े कई संत-महंत मौजूद थे।  

सिंहस्थ 2016 में 90 करोड़ रुपए पाइप लाइन में ही खर्च कर दिए फिर भी नहीं

साधु-संतों ने यह भी कहां कि शिप्रा शुद्धिकरण के नाम पर 90 करोड़ तो सिर्फ पाईप लाईन में ही खर्च कर दिए गए है। शिप्रा तो शुद्ध हुई नहीं। खान डायवर्शन पाईप लाईन सिंहस्थ 2016 में 19 किलो मीटर लंबी ग्राम राधौपिपलिया से कालियादेह महल  बिछाई गई थी ताकि इन्दौर की रफ से आने वाला गंदे पानी को इस लाईन से डायवर्ट कर दिया जाए पर यह तो फैल ही हो गई। संतों ने कहा कि सिर्फ नहर द्वारा ही गंदे पानी को शिप्रा नदी में मिलने से रोका जा सकता है।