April 19, 2024

– चक्रतीर्थ पर प्रतिदिन पहुंच रहे थे करीब 100 शव, लेकिन सरकारी आंकड़े अब भी 171 पर ही अटके हुए
उज्जैन। कोरोना की पहली और दूसरी लहर ने देश-विदेश में मौत का तांडव मचा दिया था। बड़ी संख्या में लोग कोरोना महामारी का शिकार हुए उन्हें समय पर उपचार नहीं मिला, जिसके कारण वह मृत्यु के शिकार हो गए। अगर हम बात करें हमारे शहर की तो यहां भी मृत्यु बड़ी संख्या में हुई, लेकिन सरकारी आंकड़े अभी भी 171 पर ही अटके हुए। प्रशासनिक अधिकारियों व डॉक्टरों ने आंकड़े में जो खेल किया है। इन जिम्मेदारों पर कैसे और कौन कार्रवाई करेगा।
ज्ञात हो कि कोरोना महामारी की पहली लहर से 100 लोगों से अधिक लोगों की मौत हुई थी, लेकिन डॉक्टरों की मदद से प्रशासिनक अधिकारियों ने इस आंकड़े को 100 से आगे ही बढ़ने दिया। लेकिन दूसरी लहर में मौत अपना तांडव इस तरह कर रही थी कि सिर्फ शिप्रा तट स्थित चक्रतीर्थ पर प्रतिदिन करीब 100 शव पहुंच रहे थे। इनमें से करीब 90 प्रतिशत लोगों का सरकारी व प्रायवेट अस्पतालों में कोरोना पॉजिटिव आने पर ही उपचार चल रहा था। इसी दौरान इन लोगों की अस्पतालों में मौत भी हुई। लेकिन मृत्यु के बाद परिजनों को जो सर्टीफिकेट दिए गए उसमें नेगेटिव लिखा था। अस्पताल में जब तक उपचार चल रहा था तब तक मरीज पॉजिटिव था, लेकिन मरीज की मौत होने पर कागजों में वह नेगेटिव हो गया। परिजन डॉक्टरों से गुहार लगाते रहे कि मरीज पॉजिटिव था, उसकी मृत्यु कोरोना से हुई है, लेकिन डॉक्टरों ने किसी भी मरीज के परिजनों की एक ना सुनी। इन सब में खास बात यह भी देखने में आई कि परिजन शव के लिए फरियाद करते रहे, लेकिन डॉक्टरों ने शव भी परिजनों के सुपुर्द नहीं किए। परिजनों दूर से दर्शन करा शमशान घाट वाहन में ले गए। जिस घर के मरीज की मृत्यु अस्पताल में उपचार के दौरान हो रही थी उसके परिजन इस बात से हैरान थे कि जब मरीज नेगेटिव था तो उसका शव उन्हें क्यों नहीं दिया जा रहा है। यह सब खेल प्रशासनिक अधिकारियों के इशारों पर डॉक्टरों द्वारा किया जा रहा था। ताकि मृत्यु के जो आकड़े एक हजार से ऊपर पहुंच गए है बहुत ही सीमित ही रहे और हुआ भी वहीं अभी भी सरकारी आंकड़े को हम देखें तो यह आंकड़ा 200 भी पार नहीं कर पाया है। अभी भी यह आंकड़ा बंद घड़ी की तरह 171 पर ही अटका हुआ है। अब सवाल यह उठता है कि जो खेल जिम्मेदारों ने आंकड़ों में किया है, उनके खिलाफ कौन और कैसे कार्रवाई करेगा।
शमशान शव जलाने की भी नहीं थी जगह
ज्ञात हो कि एक-दो ही उदाहरण ही ऐसे होंगे जिनकी घरों में मृत्यु हुई हो। अधिकतर मरीजों की मृत्यु उपचार के दौरान अस्पताल में ही हुई थी। शहर में इतनी ज्यादा मृत्यु हो रही थी कि शहर के शमशान घाटों पर शव जलाने की जगह कम पड़ गई थी। शमशान में ओटले खाली नहीं मिलने पर लोगों ने अपने परिजनों के शव का अंतिम संस्कार नीचे जमीन पर ही कर दिया था। एक समय तो ऐसा भी आया कि शमशान घाट के प्रबंधक लोगों से यह कहने लगे कि अपने परिजनों के अस्थी शीघ्र ही शिप्रा में ठंडी कर दे और हाथों हाथ ही फूल अपने साथ ले जाए। शमशान घाट पर इन्हें फूल रखने की पर्याप्त जगह नहीं है।